लेखनी कहानी -01-Jun-2023 कातिल कौन
भाग 21
मीना आई थी यहां हीरेन की दलीलें सुनने और उसकी प्यारी प्यारी भाव भंगिमा देखने के लिए लेकिन वह त्रिपाठी की ऊलजलूल बहस को सुने जा रही थी । त्रिपाठी अनुपमा , अक्षत और सक्षम पर इल्जाम पर इल्जाम लगाये जा रहा था । हो सकता है कि वह जो कह रहा हो , सही हो लेकिन मीना को वह अच्छा नहीं लग रहा था । उसने अनुपमा का चेहरा देखा था । कितना उदास, हताश, निराश और कुंठित दिख रहा था जैसे कि सोने के कलश पर पिघला हुआ तांबा उंडेल दिया हो । उसकी आंखों से बहते झर झर आंसू हर किसी को अपने साथ बहाकर ले जा रहे थे । उसकी आंखें अपमान के बोझ से इतनी बोझिल थीं कि वे मुंदी जा रही थी । लब कंपकंपा रहे थे । टांगें लड़खड़ा रही थीं और शरीर शिथिल हो रहा था । मीना को उसकी हालत पर तरस आने लगा और सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी पर आक्रोश ।
"ये वकील क्या अनाप-शनाप बके जा रहा है ? कोई इसे रोकता क्यों नहीं है ? एक इज्ज़तदार महिला पर भरी अदालत में लगातार कीचड़ उछाले जा रहा है और सब लोग चुपचाप देख रहे हैं । इसकी बकवास सुन रहे हैं । अरे, कौरवों की सभा में भी द्रोपदी का इतना अपमान नहीं हुआ होगा जितना अपमान इस अदालत में एक नारी का हो रहा है । न्याय के नाम पर ये क्या तमाशा हो रहा है ? एक औरत को सरेआम जलील किया जा रहा है और सब नपुंसक लोग इसे देख रहे हैं । ये वकील है या दुशासन? न्याय की गद्दी पर ये कौन धृतराष्ट्र बैठा है जिसे कुछ भी दिखाई नहीं देता है" । मीना बुरी तरह से बिफर पड़ी थी । एक स्त्री ही दूसरी स्त्री की पीड़ा समझ सकती है । और उसे सबसे अधिक गुस्सा तो हीरेन पर आ रहा था "वह अब तक चुपचाप क्यों बैठा है ? क्या ये वही हीरेन है जो सामने वाले के परखच्चे उड़ाने में माहिर है ? इसे क्या हो गया है ये बोलता क्यों नहीं है ? अनुपमा ने कुछ कहने की हिम्मत की थी तो उसको भी चुप करा दिया । ये क्या तमाशा चल रहा है" । वह जोर से चीख उठी ।
मीना के इस तरह शोर मचाने पर जज साहब भड़क गए और उनका "हथौड़ा" ठक ठक की आवाज के साथ मेज पर बज उठा । उन्होंने हथौड़ा इतना तेज मारा था कि उन्हें "ऑर्डर ऑर्डर" कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी । मेज की आवाज ही जैसे मीना से कह रही थी "अरी डर ! अरी डर" ।
जज साहब के मुंह से गुस्से में झाग निकलने लगे । हीरेन का दिया हुआ पान वे निगल चुके थे। एक और पान खाने की तलब उठने लगी थी मगर वे हीरेन से कैसे कहें ? उन्होंने पहले ही ताड़ लिया था कि हीरेन और इस लड़की के बीच में कुछ न कुछ "पक" तो रहा है । यदि इस लड़की पर थोड़ी जोर आजमाइश की जाए तो क्या पता "शरबती पान" खाने मिल जाये ? यही सोचकर उन्होंने रौबीली आवाज में जोर से पुकारा "था ने दा .."
थानेदार मंगल सिंह को भी एक झपकी लग गई थी । लेकिन उसने जैसे ही जज साहब के मुंह से "था" अक्षर सुना वैसे ही उसकी नींद खुल गई और वह अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो गया । इसी बीच उसने "ने" और "दा" अक्षर भी सुन लिये थे । वह समझ गया कि जज साहब उसे ही आवाज लगा रहे हैं । उसने कड़क कर एक जोरदार सैल्यूट मारते हुए कहा "यस सर" ।
जज साहब उस कड़क सैल्यूट से बहुत खुश हुए । जिस तरह एक लड़की एक मुस्कान से बड़ा से बड़ा काम निकलवा लेती है उसी तरह एक पुलिस मैन एक सैल्यूट से बड़ा से बड़ा काम निकलवा लेता है । उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वो किसी रियासत के राजा हैं और सामने थानेदार के रूप में सेनापति उन्हें सलाम कर रहा है । जितने भी लोग लोकतंत्र के हिमायती बनते हैं उनके मन में एक दबी दबी सी चाह अवश्य रहती है कि उन्हें हर जगह किसी राजा की तरह सम्मान मिले । दस बीस आदमी उनके आगे पीछे घूमते रहें । बड़ी से बड़ी कोठी , गाड़ी और पूरा लाव लश्कर उनके साथ चले । यही लोकतंत्र के चहेतों की तमन्ना है । न्यायपालिका तो राजनेताओं और नौकरशाहों से चार कदम आगे है । कोई उनसे पूछे कि तुम्हें "शाही" सम्मान की क्या आवश्यकता है तो ये चट से कहते हैं "हम प्रधानमंत्री और दूसरे नेताओं के केस सुनते हैं इसलिए हम सबसे बड़े हैं । अत: हमें सबसे अधिक महत्व मिलना चाहिए" । तब से जुडिशियरी खुद को सम्राट मानने लग गई ।
जज साहब को उस सैल्यूट से जोश आ गया । वे गरज कर बोले "अरेस्ट हर" । ऑर्डर हो चुका था और पुलिस को आदेश की पालना करनी थी । मीना एक महिला थी और महिला की गिरफ्तारी एक महिला सिपाही ही कर सकती थी । पर यहां अदालत में महिला पुलिस कर्मी कहां से लाऐं ? थानेदार मंगल सिंह जज के सामने मीना को अरेस्ट करने में हिचकिचा रहा था क्योंकि कोर्ट पहले भी पुरुष पुलिस कर्मियों द्वारा किसी महिला को गिरफ्तार करने पर पुलिस को लताड़ लगा चुका था । इसलिए मंगल सिंह जज की ओर देखता रहा । उसने किया कुछ नहीं ।
"थानेदार जी, देख क्या रहे हो ? गिरफ्तार कर लो इस उद्दंड लड़की को" । जज साहब चीखे
"हजूर , ये एक लड़की है। मैं इसे कैसे गिरफ्तार कर सकता हूं ? कोर्ट में महिला पुलिस भी नहीं है । मैं अभी मंगवाता हूं महिला पुलिस" । मंगल सिंह मिमियाते हुए बोला ।
"रहने दो , रहने दो । कोई जरूरत नहीं है महिला पुलिस की । आप ही इसे गिरफ्तार कर हमारे सामने पेश कर दो" ।
जज साहब वैसे तो पुलिस अधिकारियों पर इतना ज्ञान बघारते हैं कि ऐसे करना चाहिए था, ऐसे नहीं करना चाहिए था । लेकिन जब खुद की इज्ज़त पर बात आयी तो सारे नियम कायदे तोड़कर एक महिला को गिरफ्तार कर पेश करने का हुक्म सुना दिया । इसे कहते हैं कि पंडित जी खुद तो बैंगन खाते हैं और दूसरों को बैंगन खाने से रोकते हैं । कोर्ट की हालत एक हाथी के जैसी है जिसके खाने के दांत कुछ और होते हैं और दिखाने वाले दांत कुछ और होते हैं ।
जज साहब का आदेश मिलते ही थानेदार अपने आपको सर्व शक्तिमान समझ बैठा । वह लपक कर मीना के पास आया और उसका हाथ कसकर पकड़ लिया । मंगल सिंह लगभग घसीटते हुए मीना को जज साहब के सामने ले गया और वहीं खड़ा रहा ।
"ऐ लड़की ! कौन है तू और यहां चीख क्यों रही है" ? बिल्ली की तरह गुर्राते हुए जज साहब बोले
"मैं एक आम लड़की हूं । मेरा नाम मीना है" ।
मीना अभी भी तैश में थी और थानेदार से अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास कर रही थी लेकिन पुलिस की गिरफ्त तो बिल्ली के पंजों की तरह होती है जिसमें बेचारा आम आदमी चूहे की तरह फंस जाता है । बड़े बड़े "मगरमच्छ" पुलिस के पंजों से दूर ही रहते हैं क्योंकि पुलिस को पता है कि इन मगरमच्छों के जबड़े बहुत भयंकर हैं वे पुलिस के "पंजों" को भी चटकाने की "ताकत" रखते हैं । ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका यह सब नहीं जानती है पर "मगरमच्छों" से सब लोग डरते हैं वे चाहे आम हों या खास । न्यायपालिका में भी तो इंसान ही बैठते हैं ।
"ये आम आम क्या लगा रखा है ? कोर्ट को "आमों" से कोई लेना देना नहीं है । "आम" न तो यहां चूसे जाते हैं और न ही आम से "खास दल" बनाए जाते हैं । हम केवल दो प्रकार के लोगों को जानते हैं । एक अपराधी और दूसरे वकील । इनके अलावा और किसी से कोई मतलब नहीं है हमें । "आम" जाए भाड़ में और "खास" को भेज देंगे हम कबाड़ में । कोर्ट किसी से नहीं डरते बल्कि अब तो सरकारें डरती हैं कोर्ट से । जजों को डर भी केवल इन्हीं दोनों यानि वकीलों और अपराधियों से ही लगता है । और लड़की, तू न अपराधी है और न वकील । इसलिए तेरे साथ पुलिस कुछ भी सलूक करे, हमें क्या" ? जज साहब के होठों पर एक गर्वीली मुस्कान खेलने लगी ।
अब तक हीरेन यह सोचकर चुप था कि जज के सामने मीना का पक्ष लेने से जज भड़क जाएगा । आजकल सच्चाई का साथ देने का मतलब मुसीबतें मोल लेना होता है । अगर जज उससे नाराज हो गया तो वह सक्षम, अनुपमा और अक्षत को बरी नहीं करवा पाएगा । जज यदि गुस्से में कोई ऐसा वैसा फैसला सुना देगा तो कोई उसका क्या बिगाड़ लेगा ? और अपील के लिए हाईकोर्ट जाना पड़ेगा जहां से फैसला होने में पता नहीं कितने साल लगेंगे ? इसलिए इन जज साहब की मिजाज पुर्सी तो करनी ही पड़ेगी । हीरेन जज से बोला
"बड़ी बदतमीज लड़की है ये मी लॉर्ड । किसी को कुछ मानती ही नहीं । पता नहीं खुद को क्या समझती है ? कानून , अदालत , न्याय के बारे में ABCD कुछ जानती नहीं और यहां पर प्रवचन करने आ गई है । एक बात तो है हुजूर ,जब से "आम आदमी" के नाम से एक दल विशेष बना है तब से मान सम्मान, मर्यादा , अनुशासन वगैरह सब तेल लेने चले गये हैं । अब तो सिर्फ "अराजकता" रह गई है । इस दल ने हजारों अराजक लोग पैदा कर दिए हैं । यह दल न तो संविधान को मानता है और न ही किसी कानून को । ये लड़की उसी दल की कार्यकर्ता लग रही है । इसे मैं समझाने का प्रयास करता हूं । तब तक आप ये चांदी के वर्क वाला ठंडा ठंडा कूल कूल "शरबती पान" खाइये । हीरेन ने अपने पानदान से एक शरबती पान निकाल कर जज की ओर बढाया ।
जज साहब तो इसी इंतजार में थे कि कब हीरेन उठे और कब उसे "शरबती पान" खिलाए ? उन्होंने अचके से वह पान ले लिया और हौले से उस पान को मुंह में रखकर मुंह बंद कर लिया । "ओह ! वाकई इस पान में जान है" उनके मुंहसे निकल गया । जज साहबके मुंह से अपने पान की प्रशंसा सुनकर हीरेन खुश हो गया । एक पान से सामने वाले का मुंह बंद किया जा सकता है । किसी के मुंह को बंद करने का बड़ा नायाब फार्मूला है यह । "आज के जमाने में किसी का मुंह बंद करना कोई आसान काम है क्या" ? हीरेन मीना का हाथ पकड़कर उसे अदालत से बाहर ले गया ।
श्री हरि
16.6.23
Abhilasha Deshpande
05-Jul-2023 03:10 AM
Nice suspense story
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Hari Shanker Goyal "Hari"
05-Jul-2023 09:48 AM
💐💐🙏🙏
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Gunjan Kamal
03-Jul-2023 09:29 AM
शानदार भाग
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Hari Shanker Goyal "Hari"
05-Jul-2023 09:47 AM
🙏🙏
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Madhumita
20-Jun-2023 04:44 PM
Nice 👍🏼
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Hari Shanker Goyal "Hari"
24-Jun-2023 10:08 AM
🙏🙏
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